सदगुरु के वचनों पर चलकर
जीवन का हर पल महकाएं
प्रेम करें करूणा बरसाएं
सबके आंसू पोंछते जाएं
निंदा नफरत दूर भगाएं
सबको गले लगाते जायें
कौन है अच्छा कौन बुरा है
इसमें मन को ना उलझाएं
सदगुरु के वचनों पर चलकर
जीवन का हर पल महकाएं
1
ये कहता भूखे की रोटी
प्यासे का पानी बन जाएं |
रोगी को औषधि बन कर
हर एक के ज़ख्म को भरते जाएं |
ममता बन कर प्यार लुटाएं,
खुशबू बन दुर्गंध हटाएं|
नफ़रत की दीवार गिराएं ,
और ईर्ष्या की आग बुझाएं|
काम किसी के हम आ जाएं |
ऐसा कोई कर्म कमाएं,
सदगुरु के वचनों पर चलकर-----
2
नेकी कर दरिया में फेंकें
फिर नेकी का फल नेकी पाएं |
प्यार के बदले प्यार मिलेगा
मन में प्यार का पेड़ लगाए |
अपनी कमी एहसास में लाएं
आगे गलती ना हो जाए |
गलत हुआ है जो भी मुझसे
यदि उसकी माफी मिल जाये |
उस गलती को बार बार हम
आगे चलकर ना दोहराएं |
सदगुरु के वचनों पर चलकर ------
3
जय तो हमने राम की बोली
पुतले रावण के जलवाये |
रावण का अनुकरण कर रहे,
रामराज्य फिर कैसे आए |
गुरमत बार बार समझाए ,
मानवता का पाठ पढ़ाए |
हर मसले का हल है सद्गुरु,
इसके दर पर नाम लिखाएं |
नर बन कर आए थे जग में ,
नारायण बन कर के जाएं |
सदगुरु के वचनों पर चलकर...
माँं
1
प्रेम करुणा और दया की मूर्ति होती है माँं |
चलते फिरते जिस्म में नारायणी होती है मां |
अवगुनो को बख्स देने की कला होती है मां |
गंदगी को स्वच्छ करने की नदी होतो है मां |
फूलों की खुशबू के जैसी महकी महकी होती मां |
बच्चों के अरमान की हर पूर्ति होती है मां |
जगमगाती जिंदगी की आरती होती है मां ,
चलते फिरते जिस्म में नारायणी होती है मां |
2
मुस्कराकर बोलने से मन ही मन खुश होती मां
डांट और फटकार सहकर चुपके- चुपके रोती मां |
सागर से गहरी है मां और अम्बर से ऊंची है मां |
प्यार बनकर बादलों सी झट बरस पड़ती है मां |
पूजा की थाली के जैसी वंदनीय होती है मां |
चलते फिरते जिस्म में नारायणी होती है मां |
3
मेरी खुशियों के लिए हर ज़ख्म को सहती है मां |
और मेरी नादानियों पर मुस्करा देती है मां |
बनके सूरज की किरण जीवन प्रकाशित करती मां |
चांद की उस चांदनी सी शीतलता देती है मां |
लाख हों ज़ुल्मो सितम पर धरती जैसी होती मां |
ब्रक्ष बन हर पल खड़ी छाया सदा देती है मां |
फूल सी कांटों के बीच में पर महक देती है मां |
चलते फिरते जिस्म में नारायणी होती है मां |
- तनूजा चौहान (मुंबई)