एक दिन रावण सपने में मुझसे बोला।
क्यों भाई हर वर्ष तुम दसहरा मनाते हो।
बड़ी धूम धाम से मुझे जलाते हो ।
लेकिन जिसे तुम जलाते हो,वह
तो मेरा पुतला मात्र है।
मेरे असली स्वरूप को तुम तो जला ही नहीं पाते हो।
इसीलिए बड़ी शान से अभी तक मैं जिन्दा हूं।
बैठता हूं सबके मन की डाल पर,
मैं तो एक आज़ाद परिंदा हूं।
अरे , पहले तो मैं केवल लंका पर ही राज करता था।
अब तो पूरे विश्व में सबके दिलों पर राज करता हूं।
तुम मुझे क्या जला पाओगे ?
मै तो अपने बल के प्रयोग से,
पूरे संसार को जलता हूं।
इसीलिए तो घर ,समाज ,प्रांत और देश को आपस में लड़ाता हूं।
फिर भी वेद, पुराण और शास्त्रों का ज्ञाता होने के नाते आज भी
धर्म का सम्मान करता हूं और कुछ राज की बातें बताता हूं।
यदि तुम वास्तव में मुझे जलाना चाहते हो।
मेरे अस्तित्व को पूरी तरह से मिटाना चाहते हो।
तो बसा लो अपने दिल में,
इस रमे हुए राम को।
जीवन में कभी नहीं, भूलना इनके नाम को।
इन्हीं के प्रभाव से मेरा अमृत कुंड , पूरी तरह से सूख जाएगा।
तथा अहंकार वाला असली स्वरूप,सदा सदा के लिए खत्म हो जायेगा।
मैं भी बार बार जलने से तंग आ गया हूं, भला अब तो मुक्त हो जाऊंगा।
तथा रामे राम के निराकार स्वरूप मे ,
हमेशा हमेशा के लिए विलीन हो जाऊंगा।
तब तुम सही मायने में दशहरा माना पाओगे।
हर एक दिल में प्यार व नम्रता की
खुशबू आयेगी।
चारों तरफ होगा राम का राज,
फिर तो लंका में भी अयोध्या नजर आयेगी।
लंका में भी अयोध्या.....
लंका में भी अयोध्या.....
- त्रिभुवन (मुंबई)