बचपन से ही मैं सुनते आये हैं - यह भजन
गाते हैं जिसे भक्तजन ,कि-
कन्हैया -कन्हैया तुझे आना पड़ेगा
गीता वाला वादा निभाना पड़ेगा |
मैं सोचता हूँ कि-श्रीकृष्ण तो विजेता हैं
- न कि कोई नेता या अभिनेता
फिर किसलिए याद दिलाई जा रही है, उन्हें -भूले हुए इरादे की ,गीता वाले वादे की ?
प्रश्न यह भी है कि - श्रीकृष्ण की याददाश्त-क्या मानव से कमजोर है,
जो खुद का किया गया -वादा ही भूल गये?
या वे कुर्सी मोह में झूल गये ,
ख़ुशी से फूल गये-आज के नेताओं की तरह ?
सोचा तो पाया लि- यह तथ्य निर्विचार है
कि-श्रीकृष्ण सत्य के अवतार हैं,
भुल्लनहार नहीं,बख़शणहार हैं |
पाखंड में डूबे हम इंसानो को अधिकार ही नहीं है -
धर्म रहस्य की मीठी -मीठी बातों की लोरी-किसी को सुनाने का -
जीवन की वास्तविकताओं से बरगलाने का -
श्रीकृष्ण तो नाम है -तत्व को पी जाने -और
धर्म को जी जाने का ,फिर भी -गा रहे हैं वर्षों से कि-
कन्हैया -कन्हैया तुझे आना पड़ेगा
गीता वाला वादा निभाना पड़ेगा |
सोचिये -यदि हर मंदिर में धारण किये हुए मौन -राधा के मोहन
श्रीकृष्ण यदि बोल उठे तो -कहेंगे -मैं नाशवान नहीं ,शाश्वत हूँ ,
मैं कहीं गया ही नहीं -तो आऊंगा कहाँ से ?
क्यों कीमती साँसे -व्यर्थ गंवाते हो
ऊंचे स्वर में चिल्लाते हो,-वादा और इरादा
मैं तो वर्षों से उतरना चाहता हूँ -तुम्हारी आत्मा से
तुम्हारे मन में ,बुद्धि में ,ह्रदय में -
लेकिन वहाँ पहले से विराजमान हैं-कुमति का दुर्योधन ,कामुकता का दुशासन
षड्यंत्रों की मंथरा और अहंकारी रावण
सत्य से विमुख वंश और आततायी कंस
इस चाण्डालचोकड़ी में -गुंजाईश ही कहाँ है
पाखंड को तिलांजलि देकर ,यथार्थ ,सत्य को अपना बनाने की
किसी अन्य की सफलता पर भी मुस्कुराने की
यदि सचमुच मुझे बुलाना चाहते हो तो-तुम्हें
ख्याली कल्पनाओं से बाहर आना होगा
और उससे भी पहले-अपने
मन-बुद्धि-ह्रदय को बड़ा बनाना होगा - बड़ा बनाना होगा