जो आज़ादी के 73साल बाद भी आज़ादी मांग रहे हैं उनके लिए ग़ज़ल अर्ज़ है -
अपना घर जो आप फूँक दे इतनी आज़ादी नहीं अच्छी
सच्ची आज़ादी तो वो है,नहीं दिलो में कोई दीवार हो |
मानवता को जीवित रखें,दानव सा ना श्रृंगार हो,
आज समय की यही मांग है,मिलवर्तन हो,अमन-प्यार हो
जिसमें सारे रहें बराबर ,ऐसा आओ जगत बनायें,
ऊँच-नीच का चक्कर मिट जाए,मानव-मानव एकसार हो |
किसने,कितने कहाँ हैं मारे रोज़ यही छपती हैं खबरें ,
कितने मरते हुए बचाये,ऐसा भी कोई समाचार हो |
जग कैसा ,जैसे हम खुद हैं ,कहते हैं सब लोग सयाने
हम सुधरेंगे ,जग सुधरेगा ,यही हमारा शुभ विचार हो |
मिलवर्तन है धर्म हमारा,अमन-प्यार है जीवन शक्ति ,
समय का पहिया घूमे निशदिन ,गतिशील हो निराकार हो |
सेवक जीवन महासमर है,अहम् से है संघर्ष निरंतर,
आज समय की यही मांग है,मिलवर्तन है अमन-प्यार हो |