कविता - प्रेम का एहसास...

 

माँ का गोदी में बच्चे को दुलराना..

 

कुम्हार का दीये बनाना..

 

ये सूरज चाँद सितारे..

 

सब में प्रेम के होते इशारे...

 

 

रात में हम देखते प्रियतम के सपने..

 

उष्ण में वर्षा का जल..

 

किसान को लहलहाते फसल..

 

नदियों में कल कल बहता जल..

 

ये सब मचाते हैं प्रेम के हलचल...

 

 

आम के पेड़ पर जब कोयल की कूक..

 

गुलाब व चंपा के फूल की महक..

 

मंदिर में बजते हैं घंटे..

 

मस्जिदों में होते हैं अज़ान..

 

हम पढ़ते हैं रामायण या क़ुरान..

 

सब में प्रेम का मिलता है ज्ञान...

 

 

प्रेम में टूटती हैं जाति धर्म की वर्जनाएँ..

 

खत्म हो जाती है नफ़रत की दीवार..

 

हर चीज में लगता है अपनापन..

 

बस! होता है दीवानापन..

 

प्रेम अमर है..

 

प्रेम को मिटा नही सकते..

 

उसमें हमें बहना है..

 

प्रेम में हमें जीना है...

 


लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव


- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

ग्राम-कैतहा,पोस्ट-भवानीपुर

जिला-बस्ती 272124 [उत्तर प्रदेश]

मोबाइल 7355309428