तबलीगी जमात की आजकल बहुत चर्चा है | यह चर्चा जितनी ज्यादा पढ़ने और सुनने को मिल रही है उतनी ही मेरे मन की वेदना भी बढ़ रही है जबकि मार्च 2020 से पहले मैंने इसका नाम भी न सुना था |
हमारा देश इन दिनों एक कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय महामारी कोरोना के शिकंजे में फंसा हुआ है |मरने वालों की संख्या रोज बढ़ जाती है |सक्रमण से प्रभावित लोगों की संख्या भी रोज बढ़ रही है |
ये तो आंकड़े हैं जो शुष्क होते हैं ,जो हमें बहुत ज्यादा दुखी या खुश नहीं करते लेकिन तबलीग एक ऐसी ज़मात है,जिसका सम्बन्ध इस्लाम धर्म के सुन्नी वर्ग के साथ है |यह इस्लाम धर्म के एक प्रचार आंदोलन के रूप में पुरानी पहचान रखता है | इसके साथ जुड़े लोगों की जो ख़बरें आजकल संचार माध्यमों द्वारा हम तक पहुँच रही हैं,वे इसकी ख्याति एक बुराई के रूप में पहुंचा रही हैं |जबकि कुछ समय पहले तक इसकी ख्याति एक धार्मिक संगठन के रूप में थी लेकिन भयंकर लापरवाही के चलते यह संगठन देश में महामारी को फैलाने का एक माध्यम सिद्ध हुआ है |
एक अध्यात्मप्रेमी होने के नाते मुझे ऐसी ख़बरें पढ़कर दुःख होता है |
कल (9 अप्रैल 2020) के दैनिक हिंदुस्तान में मैंने खबर पढ़ी कि द्वारका (दिल्ली )में बोतलों में मूत्र इकठ्ठा करके आने-जाने वाले लोगों पर फेंका गया |उस इमारत में क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया था ,जिसमें तबलीगी ज़मात के (संक्रमण से प्रभावित )लोगों को रखा गया था |
ग़ाज़ियाबाद के एम .एम .जी हस्पताल में तबलीगियों ने डॉक्टर्स और नर्सों के साथ सहयोग तो नहीं ही किया लेकिन अश्लील और अभद्र हरकतें करके अपने धार्मिक श्रद्धालु होने का भ्र्म भी तोड़ दिया |इस प्रकार तबलीग की ख्याति में एक और धब्बा लगाया |
इस संगठन की स्थापना वर्ष 1925 के आस-पास मेवात क्षेत्र में मौलाना मोहम्मद इलियासी ने की थी |तबलीगी ज़मात की प्रतिनिधि पुस्तक का नाम है-फ़ज़ाइले अमाल |
कल youtube पर एक हिंदी चैनल पर एक इस्लामी विद्वान मज़हर हसन ने इस संगठन को मासूम बताया था |
केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान ने एन .डी. टी. वी. पर बताया कि तबलीगी ज़मात के जिस काम की ज्यादा चर्चा होती है,वह मुसलमानो के सुधार का कार्य है |उनकी दाढ़ी का रख-रखाव कैसा हो,पायजामों आदि की नीचाई कितनी हो इस प्रकार की ऊपरी व्यवस्था का ध्यान रखना आदि |
यह इस्लाम की आतंरिक व्यवस्था है जिससे किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन तबलीग का वास्तविक काम है- मुसलमानो को हिन्दुओं तथा अन्य धर्मो से दूर रखना |
उदाहरण के तौर पर खान साहब ने बताया कि मुसलमानो में जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे से विदा लेता था तो उसे खुदा हाफिज कहकर विदा किया जाता था लेकिन तबलीग़ियों ने कहा कि खुदा तो यहूदी भी कहते हैं इसलिए खुदा हाफिज के स्थान पर अल्लाह हाफिज कहा जाए |
मेरी जानकारी के अनुसार -जो इस्लाम का सामान्य अनुयाई है वह परमेश्वर के लिए प्रायः दो शब्दों का उपयोग करता है -खुदा और अल्लाह |
इनमें से एक शब्द को प्रयोग न करने योग्य मान लेना तो संकीर्णता है |और संकीर्णता बढ़ाना धर्म का काम नहीं है |
संगठन की स्थापना की दृष्टि से तबलीगी संगठन पिचानवें साल का बुजुर्ग हो चुका है |इस दृष्टि से तो इसमें अनुभव की परिपक्वता दिखनी चाहिए थी |
इस्लाम के विद्वान श्री फैज़ान मुस्तफा ने एक चैनल पर तबलीगी ज़मात को धरती के नीचे और आकाश से ऊपर की बातें करने वाला अर्थात रूहानी कार्यक्षेत्र वाला संगठन बताया |दुनिया भर में इसके पांच करोड़ के आस-पास सदस्य बताये जाते हैं |इंडोनेशिया ,मलेशिया और पाकिस्तान में भी इसके संगठन हैं |यह भी ज्ञात हुआ है कि पाकिस्तान में इन्हें इनका धार्मिक कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं दी गयी थी जबकि पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है |भारत इस्लामिक देश नहीं है लेकिन यहाँ कार्यक्रम अच्छी तरह हो गया जबकि कोरोना का खतरा यहाँ भी उतना ही था |
इसका अर्थ यह है कि भारतीय अधिकारी उतने जागरूक नहीं रहे |उन्होंने लोगों के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही की |
ब्रिटिश शासनकाल में इस्लाम के एक बड़े विद्वान हुए -सर सय्यद अहमद खां |इस्लाम को आगे बढ़ाने में उनका भी योगदान था |उन्होंने अलीगढ में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना की ,इस प्रकार मुसलमानो में शिक्षा का प्रसार किया | इतिहास में उनका जिक्र एक इस्लामी शिक्षाविद के रूप में आता है |आरिफ मोहम्मद खां साहब ने अपने इंटरव्यू में बताया कि तबलीगी ज़मात ने तब उनका भी विरोध किया था |
कई विद्वानों को सुनने के बाद मेरी वेदना और भी गहरी हो गयी |यह वेदना धर्म के नाम पर फैली हुई अज्ञानता को लेकर है |चाहे गोमूत्र से कोरोना का इलाज करने के लिए पार्टी करने वाले हों या संक्रमण से मृत्यु के कगार तक पहुँचने की स्थिति में भी मस्जिद को न छोड़ने का फतवा देने वाले हों |जो भी वैज्ञानिक खोजों की वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते ,अज्ञानी हैं | इन दोनों ही मामलों का वास्तविक धर्म अथवा मानवता से कोई लेना-देना नहीं है |
तबलीग के सम्मेलन में शामिल लोगों में से शेष का तो अधिकारियों ने पता लगा लिया है लेकिन पचास आदमियों का कुछ अता- पता नहीं है| जबकि संक्रमण से प्रभावित लोगों और उनके संपर्क में आने वाले लोगों की खोज का कार्य काफी दिनों से चल रहा है |
सम्मेलन में आये दो सौ पचास लोग विदेश से आये थे ,जिनकी सही प्रकार से जांच नहीं हुई और वे कोरोना संक्रमण का विस्तार करने वाले सिद्ध हुए |
तबलीगियों का सम्मेलन तो हो गया इसलिए शेष समाज को बचाने के लिए उन्हें स्वतः ही प्रशासन को बताना चाहिए था ताकि उनकी जांच हो पाती और रोग का फैलाव रुकता |
लेकिन ऐसा नहीं हुआ |उन्होंने प्रशासन को कोई सूचना नहीं दी | तेलंगाना में पहली बार रोग के फैलाव में तबलीग़ी भूमिका सामने आयी |
न जाने कैसे फतवे दिये गये क्यूंकि इस सम्मेलन में भाग लेकर वापस गए लोगों में महामारी के प्रति जागरूकता का कोई परिचय नहीं मिला |लोग अपने घरों में सामान्य दिनों की तरह चले गये और रोग को फैलाने वाले सिद्ध हुए |कोरोना के संक्रमण से पीड़ितों की संख्या में दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं | इस स्थिति में तबलीग कोई देश की हितैषी संस्था तो कतई सिद्ध नहीं होती | जो देशहित की बजाय देशहित करने वालों के मार्ग में बाधा डाले उस संगठन से एक भारतीय होने के नाते किसी को भी हमदर्दी क्यों हो ? देश की हितैषी संस्थाएं तो आर्थिक समस्या के कारण भुखमरी के कगार पर पहुंचे गरीबों को अन्न मुहैया करवाने के लिए काम कर रही हैं क्यूंकि प्राणिमात्र की सेवा ही सच्चा धर्म और सेवा है |
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