कविता - मैं पेड़ हूँ


मैं पेड़ हूं


कोई कुर्ते की जेब नहीं


जहां


आदमी ठूस कर रख सकता है


कुछ भी


यह क्या .....आदमी ने तो ठूस कर रख दी


मुझमें


प्लास्टिक की रस्सी, पन्नी और न जाने क्या क्या


अब बताओ


सांस लूं तो कैसे ?


और बताऊं एक बात


वो निर्दयी आदमी / जब


ठोक रहा था कील


हथौड़े के सहारे


मेरी छाती पर सच -


कितना रोया था मै


चीखा था, चिल्लाया था


लेकिन दया नहीं आई/उसे


और चल दिया वह/विजयी मुद्रा में !