द्रवित मन...

हैदराबाद की पीड़िता डॉ. प्रियंका रेड्डी को श्रद्धांजलि



करें रोशनी की क्या बातें, चारो तरफ ही अंधकार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,


 


आंधी दुनियाँ भरम पे है, कलियुग अपने चरम पे है,


न विकास की बात हो रही, राजनीति अब धर्म पे है,


सोच किसी की कैसे बदलें, जब हृदय में ही विकार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,


 


जिस घर की बेटी गुजरी हैं, उस घर पर क्या बीती होगी,


कहने को बस माँ है जिन्दा, मर-मर के वो जीती होगी,


सोना- चाँदी, हीरे-मोती, उस माँ की खातिर बेकार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,


 


हाथ पकड़ कर पिता ने अपना, चलना जिसे सिखाया होगा,


उस बेटी के जले अंग को, कैसे आज उठाया होगा,


जिसने कृत्य किया है उनको, जीने का न अधिकार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,


 


बहुत हो गई थोथी बातें, अब तो कुछ कर जाना होगा,


नारी रक्षा की खातिर अब, कुछ कानून तो लाना होगा,


न्याय मिले उस बेटी को, सब की रब से ये गुहार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,


 


गुनहगार की वो हालत हो, न जिस्म में बाकी रक्त मिले,


देश नही ये दुनिया देखे, सजा उसे यूँ सख्त मिले,


''जतन'' देश की न्याय व्यवस्था, पे करना हमको विचार है,


मानवता है घायल बेहद, हुआ आज फिर बलात्कार है,



- अश्वनी कुमार "जतन"