बालपन में जो पहला शब्द सुना, वह था राम |प्रश्न उठता है कौन सा राम ? यह प्रश्न उठाते हुए किसी महात्मा ने लिखा-
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट - घट में लेटा
एक राम का सगल पसारा, एक राम है जग से न्यारा |
सतही तौर पर जब इसे पढ़ते हैं तो एक की बजाय चार राम नज़र आते हैं जबकि राम एक है |दोहे में महात्मा कहते हैं -
एक राम दशरथ का बेटा अर्थात जो त्रेता युग में हुए,महाराज दशरथ के पुत्र श्रीराम |त्रेता युग को बीते हज़ारों वर्ष बीत चुके हैं और हम तो अब जन्मे,उन्नीसवीं सदी के भी मध्य के बाद तो उन श्रीराम से हमारा सम्बन्ध नजदीकी नहीं बनता |ऐसा लगता है वे हमारा अतीत हैं,इतिहास हैं,वर्तमान नहीं हैं |इतिहास हैं इसलिए प्रश्न उठाये जाते हैं कि वे कभी हुए भी हैं या नहीं ?हुए हैं मानने वालों के अपने तर्क हैं और नहीं मानने वालों के अपने |न्यायालय दोनों के ही तर्क सुनता रहता है लेकिन मेरे लिए राम का होना सत्य है चूंकि मेरा नाम ही राम के नाम से शुरू होता है |रामायण धारावाहिक ने राम जी का जो रूप हम सबके दिलों में स्थापित किया है ,वह एक शिक्षक का रूप है जो हमें धीरज और संयम की शिक्षा देता है |
सोचकर देखिये अयोध्या में दीपमाला हो रही है,चूंकि राम का राज्याभिषेक होने वाला है लेकिन राजनीति अपने खेल खेलने शुरू कर देती है और राज्याभिषेक टल जाता है |जैसे छप्पन भोगों से सजी थाली को अलग कर दिया जाए कि यह तुम्हारे लिए नहीं है |
जले पर नमक यह छिड़का गया कि चौदह साल तक वनो में रहना पड़ेगा |राज्य तो मिला ही नहीं जन्मभूमि भी छूट गयी |संकटकाल में कई बार ससुराल वाले मददगार हो जाते हैं लेकिन वन में जाना है,शहर में जा ही नहीं सकते |बहुत विकट परिस्थिति थी लेकिन राम जी दुखी नहीं हुए चूंकि धैर्य उनका स्थाई साथी था |दूसरा सबक है संयम का,वनवास जैसा विपरीत निर्णय सुनने के बाद भी राम जी विदाई पर आशीर्वाद लेने माता कैकेयी के पास जाते हैं,जिन्होंने शासनाधिकारी होने के अधिकार से राम जी को वंचित किया |दुश्मन को भी मर्यादा से जीतना यह थी संयम की पराकाष्ठा |और इसे क्या कहेंगे कि चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके जब वापस अयोध्या लौटे तब भी सबसे पहले उन्हीं से मिले ताकि चित्रकूट में जब राम जी को लौटाने के लिए भरत जी के साथ गयी थीं तो माता कैकेयी जिस पश्चाताप की अग्नि में पिघल रही थी वह मर्यादा के जल में मिलकर शीतल और पवित्र हो जाए |
ये पंक्तियाँ लिखते समय जो दिव्य आनंद मैं महसूस कर रहा हूँ,वह कल्पना नहीं है ,इस प्रकार राम जी का होना कल्पना नहीं है |
दोहे की अगली पंक्ति में लिखा है -
एक राम का सगल पसरा, एक राम है जग से न्यारा
और उससे पहले लिखा है -
एक राम घट - घट में लेटा
एक राम घट-घट में लेटा अर्थात जो सब प्राणियों में आत्मा के रूप में विद्यमान है |यह आकार नहीं निराकार है | गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्दों में -
बिनु पग चले,सुने बिनु काना ,कर बिनु कर्म करे विधिनाना
आनन् रहित सगल रस भोगी ,बिनु बानी वकता बड़जोगी ||
जो बिना पैरों के भी चले,बिना हाथों के विविध| काम करे अर्थात कर्मयोगी है |बिना आँखों के है और जितने भी रस हैं उनका भोग करने वाला है |जिव्हा नहीं दिख रही फिर भी बड़ा वकता है |ये सारी विशेषताएं निराकार की हैं |
निराकार प्रभु का ज्ञान और इसकी अनुभूति जिसने हासिल की है (अर्थात निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी के शिष्य ),वह इस बात को भली भांति जान सकता है कि निराकार सर्वव्यापक होते हुए भी सबसे न्यारा है |ऐसे राम को सर्वव्यापक महसूस करना ही मानव जीवन की सबसे उपलब्धि है |
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जो रामधुन गाया करते थे, उसके बोल थे -
रघुपति राघव राजाराम ,पतितपावन सीताराम
ईश्वर-अल्लाह तेरे नाम ,सबको सन्मति दे भगवान |
इस धुन में मुस्लमान भाइयों के प्रति भी अपनापन है, इस प्रकार यह रामधुन विराट प्रभाव छोड़ती है |महात्मा गाँधी राम का आश्रय सदैव लेते थे शायद इसीलिए नाथूराम गोडसे की गोली खाने के बाद उनकी जुबान से निकला - हे राम |
राम के प्रति ऐसी निष्ठां किसी को भयभीत नहीं करती बल्कि निर्मल-निश्छल प्रेम का संचार करती है यह निर्मलता और निश्छलता ही राम शब्द का तत्व है |