मत बिन सोचे बोल... हृदय तराजू तोलिये फिर मुख बाहिर खोल
बचपन में बुजुर्गों से सुनते आये हैं-बोली तो अनमोल है मत बिन सोचे बोल  हृदय तराजू तोलिये ,फिर मुख बाहर खोल  बुजुर्गों ने हमें यही समझाया है लेकिन इंसान बिना सोचे बोलता रहता है |कल महात्मा एक प्रसंग सुना रहे थे  कि एक आदमी के पास आटा तो था लेकिन घर पहुँचने में उसे काफी समय लग सकता था | उसने सोचा …
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फिर पवित्र कैसे हुए ?
जहाँ तक मुझे स्मरण है मेरे साहित्यिक गुरुओं में से एक महात्मा जे.आर.डी.सत्यार्थी जी ने अपनी पुस्तक अंधकार से प्रकाश की और में लिखा है कि एक सज्जन को अपनी विद्वता का बहुत अहंकार था |वे जानते थे कि कबीर जी पढ़े लिखे नहीं हैं इसलिए वे उन पर अपनी विद्वता की धाक जमाना चाहते थे जबकि कबीर दास जी सहज जीवन ज…
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प्रेम का कोई विकल्प नहीं इसीलिए प्रेमा भक्ति ही सर्वोच्च
कुछ चीजें प्रचलित होती हैं लकिन प्रचलन से वास्तविकता बदल नहीं जाती |जैसे महात्मा जे आर डी सत्यार्थी जी का अनुभव बहुत था |2013 तक वे हमारे बीच हुआ करते थे |अनुभवजनित खरी बातें उनसे सुनने का मेरा सौभाग्य रहा है | सेवा सदन नामक जिस मकान मैं वे रहा करते थे हम लोग उनके कक्ष में बेरोकटोक चले जाया…
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और ऐसा लगा जैसे उस पहाड़ पर जंगल में मंगल हो गया हो |
बाबा हरदेव सिंह जी मधुर स्मृतियों को याद करते हुए महात्मा ने पहाड़ पर एक दुकान संचालित करने वाले महात्मा के बारे में कहा-     स्थानीय महापुरुषों का ध्यान था कि बाबा जी कुछ ऊपर चलेंगे तो बेहतर दृश्य देखने को मिलेंगे |     बाबा जी ने देखा कि महात्मा की छोटी सी दुकान है लेकिन उनकी भावना अति उत्तम थ…
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उन्होंने कहा-कोई गुरु की बात तो मानता नहीं इसलिए सत्संग में जाना छोड़ा - रामकुमार सेवक
को ई सज्जन सत्संग में नहीं आ रहे थे जबकि कुछ समय पहले तक वे नियमित रूप से सत्संग में आते थे |एक दिन मैंने पूछा -भाई साहब ,आजकल आपके दर्शन नहीं हो रहे हैं जबकि आपको देखकर कई नौजवान सत्संग में आने शुरू हुए थे | वे कुछ मायूस स्वर में बोले - लोग बाबा जी की बात मानते ही नहीं ,क्या किया जाए ?इस स्थिति मे…
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