मत बिन सोचे बोल... हृदय तराजू तोलिये फिर मुख बाहिर खोल

  बचपन में बुजुर्गों से सुनते आये हैं-बोली तो अनमोल है मत बिन सोचे बोल 

हृदय तराजू तोलिये ,फिर मुख बाहर खोल 

बुजुर्गों ने हमें यही समझाया है लेकिन इंसान बिना सोचे बोलता रहता है |कल महात्मा एक प्रसंग सुना रहे थे  कि एक आदमी के पास आटा तो था लेकिन घर पहुँचने में उसे काफी समय लग सकता था |

उसने सोचा कि रास्ते के किसी घर में ही रात बिताने का प्रबंध किया जाए |

रास्ते में बस्ती तो थी इसलिए वह एक घर में शरणागत हुआ |

घर में रह रही माता ने उसे अपने घर में शरण दे दी |लेकिन आदमी वाचाल था इसलिए जुबान पर नियंत्रण नहीं रख पाया |

वह कहने लगा -माता , आपके घर जगह तो पर्याप्त है लेकिन कमरे का द्वार छोटा है ,मुझे तो यही हैरानी है कि आपने अपनी भैंस को द्वार से बाहर कैसे निकाला?

भैंस जब तक जीवित है आप भैंस को अंदर-बाहर ला -ले जा सकती हैं लेकिन भैंस अगर मर जाए तो इस वृद्धावस्था में उसे बाहर निकालना आपके लिए कितना मुश्किल हो जाएगा |

अभी भैंस का प्रसंग समाप्त भी न हुआ था कि वह बोल उठा -माता ,आपकी बहू तो अच्छी खासी है ,आपका बेटा भी खूब जवान होगा ,मुझे यह सोचकर नयी समस्या नज़र आ रही है कि अगर आपका जवान बेटा चल बसे तो आपकी बहू जवानी कैसे काटेगी ,परमात्मा ही जाने ?

यह सब सुनकर माता को बहुत क्रोध आया उसने अपनी बहू से कहा-अगर यह यात्री न होता तो मैं इसे भीतर भी न आने देती |इसको बोलने की भी तमीज नहीं है |इसका आटा गीला हो चुका है,मैं सोच रही थी कि इसकी रोटियां बना दूँगी लेकिन इसकी सोच खराब है |ऐसे आदमी को अपने घर में रहने की अनुमति नहीं दे सकते |इसके आटे में जो पानी भरा है वैसे का वैसा उसे लौटा दो |

इस प्रकार सास-बहू ने मिलकर उस आदमी से अपना पीछा छुड़ाया |

वह आटा लेकर बाहर निकल रहा है और गीले आटे से जो पानी टपक रहा था तो लोगों ने उस आदमी को देखकर कहा-तुम्हारे आटे में से पानी क्यों टपक रहा है वह आदमी खुद पर ही व्यंग्य करता हुआ बोबोला -आटे में भरा हुआ जो आपको पानी दिखता है,वह मेरी जुबान का रस है जिसने ऐसी हालत बना दी कि रोटियां न बनवा सका और दयालू माता को ऐसे नश्तर चुभोये कि वह मुझे घर से बाहर निकालने को मजबूर हो गयी |

वह वाचाल आदमी पछता रहा था और सोच रहा था कि काश मैं अपनी जुबान पर नियंत्रण रख पाता गीले आटे की बजाय गर्म रोटियां खा रहा होता |

धन निरंकार जी 

- रामकुमार सेवक