प्रेम का कोई विकल्प नहीं इसीलिए प्रेमा भक्ति ही सर्वोच्च

       कुछ चीजें प्रचलित होती हैं लकिन प्रचलन से वास्तविकता बदल नहीं जाती |जैसे महात्मा जे आर डी सत्यार्थी जी का अनुभव बहुत था |2013 तक वे हमारे बीच हुआ करते थे |अनुभवजनित खरी बातें उनसे सुनने का मेरा सौभाग्य रहा है |सेवा सदन नामक जिस मकान मैं वे रहा करते थे हम लोग उनके कक्ष में बेरोकटोक चले जाया करते थे |

       मैं फरवरी 1986 में सन्त निरंकारी मंडल के प्रकाशन विभाग में नियुक्त हुआ था |फरवरी 1986 की सन्त निरंकारी निकालनी थी |मैं बिलकुल अल्हड युवक था |अनुभव के नाम पर बिलकुल शून्य |लेकिन बचपन से ही सत्संग से जुड़ा था इसलिए चिंता बिलकुल नहीं थी |निरंकारी विद्द्वान महात्मा जे .आर डी.सत्यार्थी जी ,निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी के निजी सचिव थे |

        सन्त निरंकारी प्रकाशन विभाग में नियुक्ति देने से पहले आदरणीय सत्यार्थी जी ने मुझे स्पष्ट कर दिया था कि मुझे प्रकाशन विभाग में आदरणीय निर्मल जोशी जी के मार्गदर्शन के अनुसार हर महीने सन्त निरंकारो मासिक पत्रिका प्रकाशित करनी है |

         निर्मल जोशी जी नारियल जैसे स्वभाव के थे |ऊपर से बहुत सख्त |मुझे उनसे शुरू -शुरू में बहुत भय लगता था क्यूंकि किसी को भी वे मुँह नहीं लगाते थे |लेकिन भीतर से वे बहुत ही प्रेमिल थे |  

         आदरणीय महात्मा जे .आर डी.सत्यार्थी जी ने एक बार कहा-सिर्फ ज्ञान लेने से प्रेम उत्पन्न नहीं होता क्यूंकि ज्ञान तो है कि बड़ा भाई है लेकिन मुकदमे ख़त्म होने का नाम नहीं लेते |

         रावण को पता था कि विभीषण भक्त आत्मा है और श्री राम के प्रति श्रद्धालु भी है लेकिन रावण चूंकि राम से वैर रखता था इसलिए छोटे भाई के प्रति जो प्रेम रहना चाहिए था वह विकसित नहीं हो सका |रावण ने विभीषण जी को अपने दरबार से लात मारकर निकाल दिया |

          विभीषण भी यह अपमान सहन न कर सके और प्रभु श्री राम की शरण में चले गए |कहने का तात्पर्य यह है कि सिर्फ ज्ञान से दृष्टि कोण परिवर्तित नहीं होता ,हाँ प्रेम से जरूर दृष्टि कोण में परिवर्तन हो सकता है |

          रावण और विभीषण के संबंधों में ज्ञान का दखल बिलकुल नहीं है |बल्कि किसी अनजान आदमी को यदि पता लग जाए कि फलां व्यक्ति मेरा भाई है तो आपस में प्रेम हो सकता है ,जैसे कुंती और भगवान कृष्ण ने कर्ण को बताया कि अर्जुन  तुम्हारा छोटा भाई है चूंकि कर्ण सूर्य पुत्र था .इस प्रकार कुंती की प्रथम संतान था |युधष्ठिर तो यमराज की संतान थे और अर्जुन इन्द्र की संतान थे |उन्होंने  कुंती के सब पुत्रों के जन्म का पृतान्त बता दिया लेकिन कर्ण का किसी भी पांडव से प्रेम नहीं था |

         भाइयों के बीच प्रेम होतो फिर ज्ञान का होना भी सफल हो जाता  है |

निरंकारी मिशन में प्रवेश मिलते ही यह तथ्य ज्ञात हो गया था कि प्यार हमारा धर्म है इंसानियत ईमान है |           

 इस प्रकार प्रेम को सर्वोच्च मान लिया गया था |

इस प्रकार प्रेम वाणी का अंग तो  बन गया लेकिन व्यवहार का अंग बन पाया या नहीं यह तो हर एक को अपना -अपना दिल ही बता सकता है |धन निरंकार जी 

 - प्रस्तुति-रामकुमार सेवक