विस्तार केवल बाहर से ही नहीं, अंतर से भी हो - सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

प्रगतिशील साहित्य संवाददाता कुमार गगन द्वारा 

चंडीगढ़ / पंचकुला / मोहाली / पिंपरी (पुणे) 25 जनवरी 2025: "विस्तार केवल बाहर से ही नहींअंतर से भी हो। हर कार्य करते हुए इस निरंकार प्रभु परमात्मा का एहसास किया जा सकता है किन्तु पहले इसकी पहचान होना जरुरी हैइसी को जानकर इंसान अपनी अंतर्मन को आध्यात्मिक आधार दे सकता है।" ये उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 58वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी के पावन सान्निध्य में आयोजित इस तीन दिवसीय संत समागम में देश विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त सम्मिलित हुए और सतगुरु के दिव्य दर्शन एवं प्रवचनों का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

इस समागम में चंडीगढ़पंचकुला, मोहाली और पंजाब से भी सेक्कड़ों श्रद्धालु भक्तो ने भाग लिया है।

सतगुरु माता जी ने अपने आशीर्वचन में आगे कहा कि भक्ति का कोई निश्चित समय या स्थान नहीं होतायह जीवन के हर क्षण में हो सकती है।

उदहारण देते हुए कहाजैसे एक फूल अपनी खुशबू हर समय बिना किसी प्रयास के 

चारों ओर फैलाता हैवैसे ही भक्ति का वास्तविक अनुभव बिना किसी दिखावे के 

आत्मसात किया जाता है। 

भक्ति केवल कोई क्रिया नहीं बल्कि 

यह जीवन के हर क्षेत्र में परमात्मा की उपस्थिति का अहसास है। 

सतगुरु माता जी ने स्पष्ट किया कि -

भक्ति के साथ साथ मानवता की सेवा और सामाजिक कर्तव्यों का पालन भी परमात्मा के निराकार 

रूप से जुड़ा हुआ है जो हर जगह और हर समय मौजूद होता है। उन्होंने कहा कि -

यदि कोई व्यक्ति केवल बाहरी दिखावे के लिए सत्संग में जाता है तो वह असल भक्ति से दूर है।

 सच्ची भक्ति तब होती है जब मनवचन और कर्म से आत्मा परमात्मा के साथ एकरूप हो जाती है

 जिससे सहज रूप में जीवन में प्रेम और सेवा का भाव उत्पन्न होता है। भक्ति के माध्यम से न

 केवल एक व्यक्ति का जीवन बदलता हैबल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन लाया जा

 सकता है। उन्होंने कहा कि इस समागम का मुख्य उद्देश्य आत्मिक उन्नति के लिए परमात्मा की

 भक्ति को अपने जीवन में प्राथमिकता देने की मानव मात्र को प्रेरणा प्राप्त हो।

 

 सतगुरु माता जी ने समाज में समरसता बनाए रखनेपर्यावरण की रक्षा करने और मानवता

 की सेवा करने को भक्ति का हिस्सा बताते हुए कहा कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में भक्ति को

 प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने श्रद्धालुओं से यह अनुरोध किया कि वे अपने जीवन में जीते

 जी भक्ति और आत्म सुधार पर ध्यान केंद्रित करें क्योंकि जीवन अनिश्चित है इसलिए हमें हर पल

 परमात्मा की उपस्थिति महसूस करनी चाहिए।

 

समागम में आयोजित हुई सेवादल रैली 

निरंकारी समागम में एक भव्य सेवादल रैली का आयोजन किया गया। जिसमें हजारों की

संख्या में महिला और पुरुष स्वयंसेवक अपनी खाकी वर्दियों में सुसज्जित होकर शामिल हुए।

सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी का रैली में

आगमन होते ही मिशन के सेवादल अधिकारियों ने उनका स्वागत व अभिनन्दन किया। 

इसके बाद इस दिव्य युगल ने सेवादल रैली का अवलोकन किया और सतगुरु माता सुदीक्षा जी

महाराज ने मिशन के शांति-प्रतीक श्वेत ध्वज का आरोहण किया।

 रैली में मिशन की शिक्षाओं पर आधारित लघुनाटिकाओं का प्रदर्शन किया गया जिनके

 माध्यम से भक्ति में सेवा के महत्व को उजागर किया गया। प्रमुख नाटिकाओं द्वारा यात्रा विवेक की

 ओरसेवा में कर्तव्य की भावना इत्यादि शिक्षाओं की प्रेरणा प्राप्त की गई। इसके अतिरिक्त

 शारीरिक व्यायाम और मल्लखंब जैसे करतब भी प्रस्तुत किए गए जिनके माध्यम से मानसिक और

 शारीरिक तंदुरुस्ती पर जोर दिया गया। ये प्रस्तुतियां महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों जैसे

 कोकणमराठवाड़ाखान्देशविदर्भमुंबई और पश्चिम महाराष्ट्र के सेवादल यूनिटों द्वारा दी गई।

 रैली में सेवादल भाई-बहनों को अपने आशीर्वाद प्रदान करते हुए सतगुरु माता

 सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि -

सेवादल के सदस्य २४ घंटे सेवा में रहते है और इन्हें अहंकार से मुक्त होकर मर्यादा और

 अनुशासन के साथ सेवा करते चले जाना है। हर सेवादल सदस्य को निरंकार परमात्मा की सेवा

 को प्राथमिकता देते हुए अपने जीवन को इसी मार्ग पर चलाना चाहिए। जब व्यक्ति को निराकार

 रूप परमात्मा का बोध होता है तो उसका मन मानवता की सेवा की ओर प्रेरित होता है। वर्दी

 पहनकर या बिना वर्दी के भी सेवा की जा सकती है लेकिन जब वर्दी पहनकर सेवा की जाती है तो

 जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। सेवा हमेशा पूरी तन्मयता और समर्पित भाव से करनी चाहिए जो

 निर्धारित आदेशों और आवश्यकताओं के अनुसार की जाए। ऐसी ही सेवा आनंद का कारण बनती

 है और ऐसी ही सेवा का हमने विस्तार करना है।

 

बाल प्रदर्शनी

     ५८ वे निरंकारी संत समागम के प्रमुख आकर्षण का केंद्र बना बाल प्रदर्शनी। महाराष्ट्र के

 लगभग १७ शहरों से मॉडल के रूप में अपनी उपस्थिति दर्शायी जिसमे विस्तार असीम की ओर

 मॉडल से जीवन को असीम परमात्मा की तरफ विस्तारित करने की प्रेरणा प्राप्त हुई इसी तरह

 कई मॉडल्स द्वारा बच्चों ने बड़ी खूबसूरती से मिशन द्वारा दी जा रही सुंदर जीवन जीने की शिक्षाओं

 को उजागर किया। विभिन्न शिक्षाप्रद मॉडल्स द्वारा बच्चों द्वारा बनाई हुई इस बाल प्रदर्शनी को

 देखने वाले श्रद्धालु दर्शक तथा पुणे एवं पिंपरी शहरों के विभिन्न पाठशालाओं से आये हुए 

छात्रों ने बहुत प्रशंसा की।