-राम कुमार सेवक
एक घर में जाना हुआ-बुजुर्ग पिता ने बेटे से पानी माँगा |बेटा झुंझलाया और बोला,जब भी मैं बाहर निकलता हूँ ,आप कुछ न कुछ माँगते ही रहते हो |
लाचार पिता क्या कहता ,उसका गला सूख रहा था |पानी ही मांगता लेकिन मांग ही सकता था ,और क्या करता |
मुझे मसूरी का सन्त निरंकारी सत्संग भवन याद आ गया |1991 की बात है ,खेमराज चड्ढा जी तब पत्रिका के प्रभारी हुआ करते थे |सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी भी तब वहाँ ही थे | यह शायद जून था सब भाषाओँ के चुनिंदा लेखक मसूरी में थे ,हिंदी के भाषा संपादक की जिम्मेदारी होने के कारण मुझमें भी जोश था |लेखकों में संपादक का रुतबा सहज ही होता है |
मान सिंह जी मान और सुलेख साथी जी,पंजाबी के भाषा संपादक थे,अंग्रेजी के संपादक थे ,आदरणीय जोगिन्दर सिंह जी और देस राज जी आहूजा , उर्दू के बेदिल सरहदी साहब |
मुझे अपनी कविता की चार लाइने याद आ रही मेरे मित्र सतबीर हरियाणवी जी लोकप्रिय कवि और गीतकार थे |वे भी मसूरी के उस सत्संग में मौजूद थे |मेरी उस कविता में जीवन की तीन अवस्थाओं का जिक्र किया गया था-बचपन ,जवानी और बुढ़ापा -पंक्तियाँ कविता में यूँ प्रस्तुत की गयी थीं-
जीवन की है शाम बुढ़ापा ,लाचारी का नाम बुढ़ापा
हरि का साथ पकड़ लेते जो,उनका है आराम बुढ़ापा
सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी,निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी और पूज्य माता सविंदर जी भी इस अवसर पर विराजमान थे |
मुझे अच्छी तरह याद है ,हमारे सम्पादकों में से ज्यादातर तो बुजुर्ग ही थे ,जब उन्होंने सुना-जीवन की है शाम बुढ़ापा,लाचारी का नाम बुढ़ापा तो राजमाता जी सहित बहुत सारे लोग मायूस हो गए लेकिन जैसे ही मैंने अगली लाइन पढ़ी कि-हरि का साथ पकड़ लेते जो,उनका है आराम बुढ़ापा तो पूरे हॉल में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी |
महात्मा कह रहे थे कि-बुजुर्ग पिता ने अपनी पत्नी से कहा कि-यह आज कहाँ गया है,मेरा तो गाला ही सूख रहा है ,एक गिलास पानी तू ही दे दे
पत्नी यद्यपि खुद भी बुजुर्ग थी लेकिन उन्होंने अपने पति को पानी गिलास दे दिया और उन्होंने पानी पीकर तृप्ति हासिल की |
बुजुर्ग माता ने उन्हें बताया-गांव में आज छबील लगी हुई है तो उसी सेवा में लगा होगा |उस बेटे ने मेरे सामने ही अपने पिता को जली- कटी सुनाई थी तो ध्यान आया कि छबील लगानी तो ठीक है लेकिन पिता की सेवा में जो एक गिलास पानी अगर वह बेटा दे सकता तो वह अधिक बढ़िया होता |काश उसे कोई समझा पाता कि बुजुर्ग पिता को पानी देना प्याऊ लगाने से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है क्यूंकि परमात्मा भाव देखता है दिखावा नहीं |