युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी - छतीस साल की मेहनत और हम

छतीस साल की मेहनत और हम

- रामकुमार सेवक 

युगदृष्टा बाबा हरदेव सिंह जी ने छत्तीस साल हम पर मेहनत की लेकिन हम उन्हें समुचित परिणाम न दे सके |

वास्तव में गुरु के वचन हर इंसान के लिए व्यक्तिगत रूप में होते हैं |अगर कोई कहता है कि हम वैसा न कर सके तो यह कहना दोषपूर्ण है क्यूंकि हम बाकी लोगों को भी अपने साथ जोड़ लेते हैं जबकि हर किसी की अपनी -अपनी अवस्था है (हमें किसी का क्या पता) |

निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी अपने प्रवचन में अक्सर कहा करती थीं कि हर इंसान खुद अपना अंतर्यामी होता है |

रेलवे स्टेशन पर मैं किसी महात्मा के साथ था |आगंतुक ने मुझे इशारा किया कि-यहाँ चरण छूकर धन नहीं करनी |

मुझे कुछ अजीब लगा क्यूंकि चरण स्पर्श करना तो हमारी भक्ति का अंग है |मैं उसके चरणों में दंडवत लेट गया |पहले मुझे अजीब लगा था जब उन्होंने चरण स्पर्श से रोका था |अब उन्हें अजीब लगने लगा |स्टेशन था तो वैसे ही भीड़ थी और यह भीड़ समय गुजरने के साथ और भी बढ़ रही थी लेकिन मुझे लगा कि चरण स्पर्श करके धन निरंकार बोलना हम निरंकारी अनुयाइयों की भक्ति का अंग है और निरंकार से हम कुछ छिपा नहीं सकते इसलिए संकोच छोड़कर चरण स्पर्श करने में कोई हानि नहीं है |

कुछ अज़नबी लोगों ने मुझसे पूछा भी कि इस तरह पैर खुले आम तो कोई नहीं छूता |

मैंने कहा-भाई साहब हम निरंकारी हैं और निरंकारी मिशन में चरण स्पर्श करना और धन निरंकार बोलना भक्ति का अंग है |

कोई चाहे जैसे भक्ति करे किसी को क्या ?चरण स्पर्श किसी की कोई हानि तो हो नहीं रही |

हमारा भारत देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है ,हर किसी को अपनी आस्था के अनुसार पूजा करने का अधिकार है और चरण स्पर्श तो बहुत ऊंची अवस्था है |भारत में तो प्राचीन काल से ही यह शिक्षा दी जाती है कि बड़ों का आदर करो और छोटों से प्यार करो |

गली-मोहल्ले में यदि हम किसी बुजुर्ग के चरण स्पर्श कर लें तो हमें बहुत आशीर्वाद मिलते हैं और जो हमें ऐसा करते हुए देखे तो उसकी दृष्टि में हमारी छवि बहुत निखर जाती है | इस प्रकार निरंकारी  मिशन की यह परंपरा हमें चमका देती है |

बाबा जी की दृष्टि में तो सर्व धर्म समभाव था |जब हम हर प्रचलित धर्म को एक समान महत्व देते हैं तो बाबा हरदेव सिंह जी की सर्व धर्म समभाव की शिक्षा को तो अपना ही लेते हैं |युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी सम्पूर्ण अवतार बाणी में मिशन के दूसरे  सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हैं -

हिन्दू,मुस्लिम,सिख ,ईसाई इक्को रब दे बन्दे ने 

बन्दे समझ के प्यार है करना,चंगे भावें मन्दे ने |

हिंदी में कहते हैं-

हिन्दू,मुस्लिम ,सिख -ईसाई ,एक प्रभु की सब संतान 

कहे अवतार यह दूसरा प्रण है जात-धर्म का छोडो मान |  


बाबा जी कहते हैं -हमें हर धर्म के अनुयाई को मानव समझकर अपना प्यार देना है |इसी अवस्था को कर्मरूप देते हुए बाबा हरदेव सिंह जी ने कहा था -कुछ भी बनो मुबारक है पर पहले बस इंसान बनो तथा -धर्म जोड़ता है,तोड़ता नहीं |

इस प्रकार बाबा हरदेव सिंह जी की शिक्षाओं को व्यवहारिक रूप देने में जरा भी कठिनाई नहीं है |जालंधर से आये एक सज्जन ने आज सुबह सत्संग में कहा कि मेरी दुकान की ऊपरी मंजिल पर एक जज साहब रहते हैं |कभी -कभी मैं उनको भी कुरेद लेता हूँ |एक दिन मैंने उन जज साहब से पूछा कि-जज साहब क्या आप औरों को ही क़ानून पढ़ाते रहते हो या आपके पास भी कुछ है ?

उनसे चूंकि रोज की बात-चीत है तो वे समझ गए और उन्होंने कहा -आपकी दुकान के बगल में ही एक महात्मा बैठते हैं जो बोरी बिछाकर लोगों के कान का मैल साफ़ करने का धंधा करते हैं |

एक दिन मेरे मन में आया कि इस महात्मा से आशीर्वाद लूँ |मैं ऊपर से नीचे आया और उसके चरणों में लेट गया |

सब जानते थे कि मैं जज हूँ और उस मामूली काम करने वाले के चरणों में लेटा हुआ हूँ |      

 जज साहब की यह बात इस बात को स्पष्ट कर गयी कि जज साहब ने भी गुरु की शिक्षाओं को अपनाया है इसलिए -बाबा जी छत्तीस साल समझाते रहे हम एक कान से सुनकर दूसरे से निकालते रहे ,उनके बारे में नहीं कह सकते |