केवल जश्न नहीं आज़ादी यह तो जिम्मेदारी है
- विनोद (हास्यकवि) (गोविंदपुरी,नयी दिल्ली)
ज़नाब ,
मेरी रात भर ,पत्नी से हुआ , वार्तालाप -इस बात पर कि
बड़े होने पर
बेटे को क्या बनाना है ?
मैंने कहा-वतन के प्रति -एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है |
मगर उसने कहा-
उसे ऐसी सरकारी नौकरी मिले-जहाँ खूब हो भ्रष्टाचार
वेतन चाहे कम हो बेशक,लेकिन-रिश्वत में मिलें-कई हज़ार
ताकि जीवन में सुख हो-बेशुमार
मैंने कहा-भाग्यवान,इस पर भी तो थोड़ा सा विचार करो
क्या कभी कोई अपने बच्चों से कहता है कि-भ्रष्टाचार करो
धर्मपत्नी जी बोली-मैं उसे तुम्हारी तरह ईमानदार तो बिलकुल नहीं बनाऊंगी
नौकरी नहीं लगी -तो दूसरों के माल का बड़ा विक्रेता बनाऊंगी और
अगर नहीं तो फिर पक्का -उसे देश का बड़ा नेता बनाऊंगी
जो विरोधी को धूल चटा दे लेकिन अपने घर को स्वर्ग बना दे |
मैंने कहा-ऐसा नेता तो भ्रष्टाचार का प्रतीक है ,क्या यह पाप की कमाई ठीक है ?
वह बोली-चलो मैं आपकी बात मान लेती हूँ
नेता नहीं तो कोई अफसर बना देती हूँ
एक बार आपके दोस्त की पत्नी ने मुझे बताया था कि-
मेरे पति तो -जो पैसे टेबल के नीचे से लाते हैं ,
उनसे मेरे लिए अच्छे -अच्छे आभूषण बनवाते हैं ,
तनख्वाह तो पूरी की पूरी बचाते हैं |
मैंने कहा-भाग्यवान ,यही तो है -भ्रष्टाचार .
इसको समूल नष्ट करने का मेरा विचार है |
और सुनो देकर ध्यान -अरी भाग्यवान
बेशक तू नेता बना, चाहे अधिकारी ,
मगर ,कूट- कूट कर भर दे उसमें-ईमानदारी ,
ताकि वह वतन के प्रति समझे -जिम्मेदारी |
जैसे पंद्रह अगस्त को हम जश्न मनाते हैं
और- उसकी कहानी बच्चों को सुनाते हैं -
सुखदेव,भगत सिंह ,राजगुरु जैसे ,अनेक हैं देशभक्त
ख़ुशी -ख़ुशी फांसी के फंदे पर झूले थे
मेरा रंग दे बसंती चोला
और वन्दे मातरम् बोले थे |
देश की खातिर -रानी लक्ष्मीबाई ने तलवार उठाई थी
वीरता के खून से खेलकर -होली मनाई थी |
दीवाने ऊधम सिंह ने हर एक का जोश बढ़ाया था
देश के दुश्मन को
उसी की सरज़मी पर मार गिराया था |
जिनके शासन में सूरज अस्त नहीं होता था
उन्हीं की नज़रों के सामने गहरा अंधकार छाया था -
यूँ भारतमाता से प्यार किया -जैसे खुदा से फकीरी ने
आज़ादी को जिम्मेदारी समझ-कीमत चुकाई शूरवीरों ने
मैंने पत्नी से कहा -अगर चाहते तो बन सकते थे वो भी नेता या अधिकारी
मगर समझा था -उन्होंने तो आज़ादी को जिम्मेदारी |
स्वतंत्रता दिवस पर जश्न तो हम सभी मनाते हैं |
याद करते हैं शहीदों को -झंडा हम लहराते हैं |
मगर अब याद रहना चाहिए -उनकी रगों में भी खून था |
जिनके मनो में आज़ादी का जूनून था |
भारतमाता के सपूतों ने बहाया अपना खून था
उनके एहसास को आगे फैलाना -असली किरदारी है
केवल जश्न नहीं आज़ादी-यह तो जिम्मेदारी है |