भगत सिंह नयी व पुरानी पीढ़ी में एक साथ लोकप्रिय हैंविशेषकर पंजाब के युवा उन्हें अपने समुदाय से जोड़कर देखते हैं जबकि उन्हें किसी धर्म या समुदाय में बांधकर देखना उनके साथ अन्याय करना होगा। भगत सिंह एक सम्पूर्ण विचारक थे, बहुत कम उम्र होने के बावजूद उनका अध्ययन बहुत विशाल था। भगत सिंह के बारे में उनके साथियो का कहना था कि उनका और पुस्तकों का चौबीस घंटे का साथ था। भगत सिंह देश की आजादी को प्राप्त करने के बारे में तो सोचते ही थे, आज़ादी के बाद के भारत के बारे में भी सोचते थे। वे ऐसा भारत चाहते थे जहाँ कोई किसी का हक़ न दबा सके,कोई किसी का शोषण न कर सके आईए-उनके विचारों को करीब से देखें -
जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाज़े उठाए जाते हैं।
मेरा धर्म देश की सेवा करना है।
प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।
देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आज़ाद है।
यदि बहारों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा । जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थाहमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिए।
किसी को 'क्रांति' शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं|
ज़रूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो । यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो पर जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।
जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी|
मैं इस बात पर जोर देता हूं कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ पर जरूरत पड़ने पर मैं ये सब त्याग सकता हूं, और वही सच्चा बलिदान है।
अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमें अंततः प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है। लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं? तभी हमें आत्मबल को शारीरिक बल से जोड़ने की जरुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमो करम पर ना निर्भर करें।
किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आंदोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है|
इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है, जैसा कि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।
व्यक्तियों को कुचल कर उनके विचारों को नहीं मार सकते।
कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे|
क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न खत्म होने वाला जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।